संवाद सहयोगी, करौं (देवघर) : गर्मी आते-आते तालाब सूखने लगते हैं। जिससे मछली के उत्पादन पर असर होने लगता है। अंचल में 219 सरकारी एवं 50 से अधिक जमाबंदी तालाब है। जिसमें बरसात के दिनों में मछली का जीरा डाला जाता है।
मछुआ समिति देती तालाब लीज पर :
करौं में मछुआ समिति का गठन 1966 में हुआ। इसके माध्यम से सरकारी तालाब को लीज पर दिया जाता है। इसके बाद इस तालाब में लीजधारी मत्स्य पालन करते हैं। तालाब का लीज एक या तीन साल के लिए दिया जाता है। इसके लिए एक निर्धारित राशि चुकानी होती है। तालाब में डालने के लिए मछली का जीरा बंगाल के नौहाटी से लाया जाता है। यह केवट उपलब्ध कराता है। मछुआरों का कहना है कि पिछले वर्ष लगे लॉक डाउन के कारण मछली का जीरा काफी मंहगा खरीदना पड़ा था। गोल्डन 1200 रूपए, ग्रास कार्प 800 रूपए, रोहू, कतला व मृग प्रजाति के मछली का जीरा 500 रूपए किलो खरीद कर तालाब में डाला गया था। सरकारी स्तर पर भी मछली का जीरा उपलब्ध कराया गया। लेकिन मछली का जीरा डालने के दो वर्ष के बाद इसका लाभ मिलता है। लेकिन गर्मी आते-बाते अधिकांश तालाब सूख जाते हैं। जिससे मछली के आकार में वृद्धि नहीं हो पाती है।
भुवनेश्वर कापरी, मछली विक्रेता ने कहा कि करौं में मछुआ समिति का गठन 1966 में हुआ था। इसके माध्यम से सरकारी तालाब को लीज पर लिया जाता है। इसके बाद इस तालाब में लीजधारी मत्स्य पालन करते हैं। तालाब का लीज एक या तीन साल के लिए दिया जाता है। इसके लिए एक निर्धारित राशि चुकानी होती है।
रंजीत कापरी, मछली विक्रेता ने कहा कि तालाब में डालने के लिए मछली का जीरा बंगाल के नौहाटी से लाया जाता है। लागत के अनुसार आय नहीं होती है। इस धंधे में कम आय होने के कारण मुश्किल से घर में चूल्हा जलता है।
चंडी कापरी, मछली विक्रेता ने कहा कि करौं अंचल में मछली पालन की अपार संभावना है। अगर सही तरीके से यहां मछली पालन किया जाता तो उत्पादन का बड़ा केन्द्र बन सकता है। लेकिन यहां किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिलने से यह व्यवसाय वृहत रूप नहीं ले पाया है।
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मछली व्यवसाय पर पड़ रहा असर - दैनिक जागरण
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