देवरिया। शशिकांत मिश्र
दशहरा करीब है। दो दिन बाद शारदीय नवरात्र शुरू होने जा रहा है। इस बीच दुर्गा मूर्ति तैयार करने वाले कलाकार मूर्तियों को अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं। इसमें स्थानीय व बंगाली दोनो तरह के कलाकार शामिल हैं। दो साल बाद मूर्तिकार अच्छे व्यवसाय की उम्मीद लगाये बैठे हैं।
शहर में दशहरा पर दुर्गा जी की मूर्ति रखने की परंपरा दशकों पुरानी है। शहर में कई जगह बड़े और भव्य पंडाल में एक से अधिक मूर्तियां रखने की परंपरा रही है। पर बीते वर्ष कोविड-19 के कारण प्रशासन ने मूर्ति रखने की अनुमति नहीं दी। लोगों ने प्रतिकात्मक रूप से ही छोटी मूर्तियों की स्थापना का पूजन अर्चन किया। इसका मूर्ति निर्माण के व्यवसाय पर गहरा असर पड़ा। कलाकारों के सामने रोजी रोटी का संकट छा गया। पर अब हालत बदले हुए हैं। शहर के कैलाशपुरी और मालवीय रोड फ्लाईओवर के नीचे मूर्ति निर्माण के वर्कशॉपों में रौनक छाई हुई। दिन के 18 घंटे कलाकार काम कर रहे हैं। कहीं कहीं तो पूरा का पूरा परिवार इस काम में जुटा हुआ है।
इससे मूर्तिकारों में उम्मीद की किरण जग गई है। वह मूर्तियां तैयार कर रहे हैं। दिन-रात परिश्रम कर साज-सज्जा कर मूर्तियों को अंतिम रूप देने में जुट गए हैं। बंगाल के मूर्तिकार और प्रसिद्ध मूर्तिकाल बद्रीपाल के वर्कशाप में काम करने वाले पश्चिम बंगाल के पूर्वी बर्द्धमान जिले के निवासी कालाकार प्रभात पाल कहते हैं कि मूर्ति निर्माण से हमें बहुत अच्छी आय नहीं होती है। पर यह हमारी श्रद्धा से जुड़ा मामला है। हम पूरे भक्तिभाव से मूर्ति तैयार करते हैं। इसे हम छोड़ नहीं सकते। वह कहते हैं कि मूर्ति का चेहरा और मिट्टी के कपड़े आदि तैयार करना हमारा काम है। मेरा भाई शंभू उंगलियों के काम का माहिर है और साथी देबराज तो पेंटिंग के विशेषज्ञ हैं। हम सब मिलकर राजी खुशी यह काम करते हैं। कैलाशपुरी के मूर्तिकार उमेश बताते हैं कि इस वर्ष हालात बेहतर होने से उम्मीद बड़ी है। कुछ आर्डर भी मिले हैं। विगत दो वर्ष से ठप कारोबार चल निकलने की आशा है। दूसरे मूर्तिकार विजय बताते हैं कि हमने काफी मुश्किल से और मंहगे दाम पर मिट्टी खरीदकर मूर्तियां तैयार की हैं। कोविड के हालात पहले से बेहतर हैं, इसलिए व्यवसाय अच्छा होगा।
दो साल बाद व्यवसाय मिलने को लेकर उत्साहित हैं मूर्तिकार - Hindustan हिंदी
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