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रांची, राब्यू। 33 लाख ग्रामीण महिलाओं को सखी मंडल से जोड़ उनकी आजीविका को सशक्त किया जा रहा है। 17 लाख ग्रामीण महिलाओं को कृषि आधारित आजीविका से जोड़ा गया है। 4119 महिलाएं बैंकिंग कॉरेस्पांडेंट के रूप में गांवों में बैंकिंग सेवा दे रही है।14 हजार महिलाओं को सम्मानजनक आजीविका से जोड़ा गया है, ये हडिय़ा-दारू निर्माण व बिक्री से जुड़ी थीं।
केस : 1
चायबगान, ओरमांझी की रहने वाली सुनीता देवी पिछले कई सालों से खेती कर रही हैं, लेकिन अब जाकर उनके हालात में बदलाव आया है। टपक सिंचाई योजना के जरिए उनके खेतों की पैदावार में जबरदस्त इजाफा हुआ है, आय भी बढ़ी है। हालांकि हमेशा से ऐसी स्थिति नहीं थी। पिता के गुजरने के बाद, छह भाई बहनों के परिवार का पालन पोषण करना उनके लिए बड़ी चुनौती थी। फिर वे किरण सृजन महिला समिति में शामिल हुईं। सखी मंडल से 15 हजार कर्ज लेकर अपने खेत में टपक सिंचाई की व्यवस्था की। जिसके बाद से वे अपने खेत में तीन फसल लेती हैं, आमदनी बढ़ गई है। सुनीता कहतीं हैं कि ड्रिप के लग जाने के बाद खेती करना आसान हो गया है। मैं साल में करीब डेढ़ लाख तक कमा लेती हूं। सुनीता अपने खेत में फूलगोभी, तरबूज और मटर की खेती करती हैं।
केस : 2
ओरमांझी के सिक्रिड गांव की अनीता कुमारी, बैंकों और आम ग्रामीणों के बीच एक अहम कड़ी बनी हुई हैं। वे मानसी सृजन महिला समूह से जुड़ीं, फिर 2019 में उन्हें ग्राम संगठन की बैठक में सखी समूह की योजना के बारे में मालूम हुआ। इसके बाद उन्होंने समूह से 50 हजार का कर्ज लिया और उससे लैपटॉप व अन्य जरूरत का सामान खरीदा। आज वे जरूरतमंदों तक बैंकिंग सेवा पहुंचा करीब आठ हजार रुपये तक अर्जित कर लेती हैं।
साथ ही गांव वालों को अब कहीं जाने की जरूरत नहीं पड़ती, वे अनीता के माध्यम से बस अपने आधार कार्ड की मदद से पैसे की जमा व निकासी कर लेते हैं। अनीता बीमा भी करती हैं, वे अपने गांव में करीब 300 लोगों का बीमा कर चुकी हैं। अनीता बताती हैं कि अब वे अपने पति का साथ दे पातीं हैं। बच्चों की पढ़ाई अच्छी हो रही है।
केस : 3
पलामू जिले की मेदिनीनगर प्रखंड स्थित पोखराहा खुर्द पंचायत के खनवां गांव की रहने वाली हसरत बानो का मुश्किल वक्त अब बीत चुका है। कभी उनके पास बच्चों को स्कूल भेजने और खाने तक के पैसे नहीं थे। लेकिन आजीविका सखी मंडल की सदस्यता लेने के बाद उनके परिवार की जिंदगी में बदलाव की नींव पड़ी। उन्होंने 70 हजार रुपये कर्ज लेकर अपने पति के लिए आटा चक्की खोली, जिससे उनकी कमाई 20-25 हजार रुपये प्रतिमाह तक होने लगी। हसरत बानो ने माइक्रो एटीएम संचालित करने का भी प्रशिक्षण लिया है। आज वे नकद जमा-निकासी, मोबाइल रिचार्ज, एसएचजी ऋण चुकौती जैसी सेवाएं प्रदान कर विकलांग और वृद्ध लोगों को डोर-टू-डोर सेवा प्रदान कर रहीं हैं। इससे भी उनकी चार से पांच हजार रुपये प्रतिमाह की आय हो रही है।
सुनीता देवी, अनीता कुमारी व हसरत बानो तो बानगी मात्र हैं। राज्य में ऐसी लाखों महिलाएं हैं जो अपने प्रयासों और सरकार की मदद से बदलते झारखंड की मिसाल बन रहीं हैं। आधी आबादी अब खेती, व्यवसाय, कुटीर उद्योग से लेकर बैंकिंग कॉरेस्पांडेंट के रूप में अपनी नई पहचान बना रही हैं। इससे न सिर्फ उनकी और उनके परिवार की आय बढ़ी है बल्कि दूर-दूराज ग्रामीण इलाके तक जरूरतमंद लोगों को उनके दर पर आसानी से सेवाएं मुहैया मुहैया हो रहीं हैं। सखी मंडल की लगभग 33 लाख महिलाओं को साथ ले ग्रामीण विकास ने झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के मध्यम से जो पहल की है, उसके सकारात्मक परिणाम जमीनी स्तर पर नजर आ रहे हैं। आप इसे शुरुआत मात्र मान सकते हैं।
दीनदयाल अंत्योदय योजना, नेशनल रूरल इकोनॉमिक ट्रांसफार्मेशन प्रोजेक्ट, स्टार्ट अप विलेज आंत्रप्रेन्योरशिप, महिला सशक्तिकरण परियोजना, औषधीय परियोजना, रेशम परियोजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना, जोहार परियोजना, झारखंड बागवानी सघनीकरण सूक्ष्म टपक सिंचाई परियोजना के माध्यम से जो प्रयास शुरू किए गए हैं उसके असल परिणाम अभी आना शेष हैं। बड़ी योजनाओं से इतर ये प्रयास न सिर्फ ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बनाएंगे बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करेंगे।
महिलाओं को सम्मानजनक आजीविका से जोड़ा जा रहा है।
- नैंसी सहाय
मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी, जेएसएलपीएस
नारी सशक्तीकरण के जरिए गांव के विकास एवं समृद्धि के लिए राज्य में झारखंड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) लगातार प्रयासरत है। अब तक राज्य में करीब 33 ग्रामीण महिलाओं को सखी मंडल से जोड़कर उनकी आजीविका को सशक्त बनाने का कार्य किया जा रहा है। सशक्त आजीविका की दिशा में सखी मंडल की बहनों के लिए किए जा रहे प्रयासों से ग्रामीण महिलाओं की आय बढ़ रही है। राज्य की ग्रामीण महिलाओं के जीवन में आर्थिक संपन्नता लाने के लिए कृषि आधारित आजीविका, स्वरोजगार, उद्यमिता, वनोपज से ग्रामीण महिलाओं की आजीविका को सशक्त बनाया जा रहा है।
जोहार परियोजना के अंतर्गत सचाई की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। मुख्यमंत्री की पहल पर सखी मंडल के उत्पादों को बड़े बाजार से जोड़कर राष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए पलाश ब्रांड की शुरुआत की गई है। हाल ही में राज्य की धरोहर आदिवासी ज्वैलरी को पलाश अंतर्गत आदिवा ब्रांड के रूप में लांच किया गया है। जिसकी बाजार में काफी मांग है। पलाश ब्रांड से करीब दो लाख ग्रामीण महिलाओं की आय सशक्त हो रही है। सखी मंडल के जरिए आर्थिक उन्नति के अलावा ग्राम विकास एवं सामाजिक विकास के लिए भी कार्य किया जा रहा है।
इस कड़ी में राज्य के सुदूर गांवों में डायन प्रथा, महिला तस्करी एवं पीवीटीइजी परिवारों के विकास के लिए कई पहल की गईं हैं। वहीं ग्रामीण इलाकों में मजबूरीवश हडिय़ा-दारू निर्माण एवं बिक्री से जुड़ी ग्रामीण महिलाओं को सम्मानजनक आजीविका से जोडऩे की पहल को भी सखी मंडल की बहनें क्रियान्वित कर रही हैं। मुख्यमंत्री की इस पहल के अंतर्गत अब तक राज्य की करीब 14 हजार ग्रामीण महिलाओं को सम्मानजनक आजीविका से जोड़ा गया है।
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जेएसएलपीएस के जरिए राज्य की करीब 17 लाख महिलाओं को कृषि आधारित आजीविका से जोड़ा जा चुका है। उद्यमिता विकास के क्षेत्र में भी कार्य किया जा रहा है, जिससे सखी मंडल की महिलाएं सफल उद्यमी के रूप में अपनी पहचान बना रही हैं। सखी मंडल की बहनों के जरिए ग्रामीण विकास को नया आयाम देने के लिए लगातार कार्य किया जा रहा है। इस कड़ी में गांवों में उत्पादक कंपनी, उत्पादक समूह, संकुल संगठन, ग्राम संगठन जैसी महिलाओं को संस्थाओं को सबल बनाया जा रहा है।
मनीष रंजन
ग्रामीण विकास सचिव
Edited By: Kanchan Singh
Jharkhand: झारखंड में आधी आबादी होगी सशक्त, खेती, व्यवसाय व बैंकिंग भी संभालेंगी - दैनिक जागरण
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