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गोंडा। मनरेगा अब श्रमिकों को रोजगार देने तक सीमित नहीं रह गई है। मनरेगा से अब गरीबों को स्थाई रोजगार मिल रहा है। जिले में सौ से अधिक लोगों को स्थाई रोजगार मिल चुका है। इससे गरीबों के चेहरों पर खुशहाली आ रही है। नए वित्तीय साल में भी पांच हजार से अधिक लोगों को रोजगार के लिए परियोजना देने की कार्ययोजना तैयार है। जिससे श्रमिकों को रोजगार मिलेगा ही, गरीब अपने व्यवसाय के मालिक बनेंगे।
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मनरेगा की इस पहल से गरीबों को अपने रोजगार के लिए बैंक से ऋण लेने के चक्कर से छुटकारा मिल गया है। उन्हें पूरी मदद मनरेगा से ही मिल जा रही है। इससे जुड़ कर कोई बकरी पालन तो कोई सुअर पालन कर रहा है। नर्सरी लगाकर पंचायतों को आपूर्ति करके कमाई कर रहे हैं। इसके अलावा मनरेगा से अस्तित्व खो रहीं नदियों को संजीवनी मिल रही है। सीडीओ शशांक त्रिपाठी ने बताया कि मनरेगा से गरीबों को रोजगार के अवसर देने की मुहिम चलाई जा रही है। जिससे वह अपना व्यवसाय करके आमदनी कर सकें। अभी वित्तीय वर्ष में भी कई परियोजनाएं शुरू की जाएंगी। (संवाद)
रंग ला रही दोहरा लाभ देने की मुहिम
मनरेगा से आम लोगों को दोहरा लाभ देने की पहल मुकाम की ओर बढ़ रही है। इसमें किसी को बकरी पालन के लिए शेड तो किसी को सुअर बाड़ा मिला है। इसका पूरा खर्च मनरेगा से हुआ है और लाभार्थी को मजदूरी भी मिली, जिससे वह अपना व्यवसाय कर रहा है। छपिया के बखरौली गांव के मोहम्म्द हुसैन ने बकरी पालन की इच्छा जताई और मनरेगा से सात लाख 77 हजार 260 रुपये खर्च हुआ। जिसमें सामग्री पर 70 हजार 627 रुपये और श्रम पर छह हजार 633 रुपये का व्यय हुआ। मोहम्मद हुसैन कहते हैं अब वह बकरी पालन कर रहे हैं। उन्हें कहीं से ऋण नहीं लेना पड़ा। यहीं के सादिक व पीर मोहम्मद को भी बकरी शेड मिला, इस पर मनरेगा से 86 हजार 662 रुपये का बजट खर्च हुआ। बभनोजत के सैदापुर गांव के दीपक को सुअर बाड़ा योजना दी गई। एक लाख 81 हजार रुपये मनरेगा से खर्च हुआ और अब दीपक सुअर पालन का काम कर रहा है। दीपक कहते हैं कि रुपये न होने से वो सुअर पालन का काम नहीं कर पा रहे थे। मनरेगा से मदद मिली और अब उनके बाड़े में 26 जानवर हैं।
मनवर नदी का फिर उदय
मनवर नदी छपिया के महुलीखोरी व वासुदेवपुर ग्रंट से होकर आगे जाती है। पिपरहीपुल से मनीपुरग्रंट के बीच गुरूदासपुर घाट के पास नदी गुम हो गई थी। नदी के पुनरुद्धार के लिए मनरेगा से छह लाख 85 हजार रुपये का बजट तैयार हुआ। यहां पर छह लाख 83 हजार रुपये श्रम पर ही खर्च हुआ। सामग्री पर महज दो हजार रुपये ही खर्च किए गए। इसके बाद अब यहां पर नदी का उदय हो गया है। कई सालों से नदी का अस्तित्व खत्म हो गया था। इससे लोगों के धार्मिक अनुष्ठान का कार्य तो प्रभावित था ही, साथ ही जलसंरक्षण का कार्य प्रभावित था। इस तरह मनरेगा ने यहां की नदी को भी नया जीवन दिया। आगे भी ऐसे ही गुम हो गईं नदियों के पुनरुद्धार की तैयारी मनरेगा से हो रही है।
मनरेगा की मिली सौगात
मनरेगा से महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए भी रोजगार के द्वार खुले हैं। परसपुर के मधईपुर खांडेराय की किसान महिला स्वयं सहायता समूह को नर्सरी की परियोजना मनरेगा से दी गई। मनरेगा से नर्सरी निर्माण के लिए छह लाख 99 हजार 999 रुपये का बजट खर्च किया गया। जिसमें श्रम पर तीन लाख 19 हजार रुपये का भुगतान हुआ। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के उपायुक्त नरेश बाबू सविता ने बताया कि इससे समूहों की ओर से पौधे तैयार किए जा रहे हैं। इस साल बारिश के समय पौधरोपण अभियान में वह पौधों की आपूर्ति करेगी। समूह को इससे लाभ होगा और समूह को किसी तरह का ऋण भी नहीं लेना पड़ा।
मनरेगा की इस पहल से गरीबों को अपने रोजगार के लिए बैंक से ऋण लेने के चक्कर से छुटकारा मिल गया है। उन्हें पूरी मदद मनरेगा से ही मिल जा रही है। इससे जुड़ कर कोई बकरी पालन तो कोई सुअर पालन कर रहा है। नर्सरी लगाकर पंचायतों को आपूर्ति करके कमाई कर रहे हैं। इसके अलावा मनरेगा से अस्तित्व खो रहीं नदियों को संजीवनी मिल रही है। सीडीओ शशांक त्रिपाठी ने बताया कि मनरेगा से गरीबों को रोजगार के अवसर देने की मुहिम चलाई जा रही है। जिससे वह अपना व्यवसाय करके आमदनी कर सकें। अभी वित्तीय वर्ष में भी कई परियोजनाएं शुरू की जाएंगी। (संवाद)
रंग ला रही दोहरा लाभ देने की मुहिम
मनरेगा से आम लोगों को दोहरा लाभ देने की पहल मुकाम की ओर बढ़ रही है। इसमें किसी को बकरी पालन के लिए शेड तो किसी को सुअर बाड़ा मिला है। इसका पूरा खर्च मनरेगा से हुआ है और लाभार्थी को मजदूरी भी मिली, जिससे वह अपना व्यवसाय कर रहा है। छपिया के बखरौली गांव के मोहम्म्द हुसैन ने बकरी पालन की इच्छा जताई और मनरेगा से सात लाख 77 हजार 260 रुपये खर्च हुआ। जिसमें सामग्री पर 70 हजार 627 रुपये और श्रम पर छह हजार 633 रुपये का व्यय हुआ। मोहम्मद हुसैन कहते हैं अब वह बकरी पालन कर रहे हैं। उन्हें कहीं से ऋण नहीं लेना पड़ा। यहीं के सादिक व पीर मोहम्मद को भी बकरी शेड मिला, इस पर मनरेगा से 86 हजार 662 रुपये का बजट खर्च हुआ। बभनोजत के सैदापुर गांव के दीपक को सुअर बाड़ा योजना दी गई। एक लाख 81 हजार रुपये मनरेगा से खर्च हुआ और अब दीपक सुअर पालन का काम कर रहा है। दीपक कहते हैं कि रुपये न होने से वो सुअर पालन का काम नहीं कर पा रहे थे। मनरेगा से मदद मिली और अब उनके बाड़े में 26 जानवर हैं।
मनवर नदी का फिर उदय
मनवर नदी छपिया के महुलीखोरी व वासुदेवपुर ग्रंट से होकर आगे जाती है। पिपरहीपुल से मनीपुरग्रंट के बीच गुरूदासपुर घाट के पास नदी गुम हो गई थी। नदी के पुनरुद्धार के लिए मनरेगा से छह लाख 85 हजार रुपये का बजट तैयार हुआ। यहां पर छह लाख 83 हजार रुपये श्रम पर ही खर्च हुआ। सामग्री पर महज दो हजार रुपये ही खर्च किए गए। इसके बाद अब यहां पर नदी का उदय हो गया है। कई सालों से नदी का अस्तित्व खत्म हो गया था। इससे लोगों के धार्मिक अनुष्ठान का कार्य तो प्रभावित था ही, साथ ही जलसंरक्षण का कार्य प्रभावित था। इस तरह मनरेगा ने यहां की नदी को भी नया जीवन दिया। आगे भी ऐसे ही गुम हो गईं नदियों के पुनरुद्धार की तैयारी मनरेगा से हो रही है।
मनरेगा की मिली सौगात
मनरेगा से महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए भी रोजगार के द्वार खुले हैं। परसपुर के मधईपुर खांडेराय की किसान महिला स्वयं सहायता समूह को नर्सरी की परियोजना मनरेगा से दी गई। मनरेगा से नर्सरी निर्माण के लिए छह लाख 99 हजार 999 रुपये का बजट खर्च किया गया। जिसमें श्रम पर तीन लाख 19 हजार रुपये का भुगतान हुआ। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के उपायुक्त नरेश बाबू सविता ने बताया कि इससे समूहों की ओर से पौधे तैयार किए जा रहे हैं। इस साल बारिश के समय पौधरोपण अभियान में वह पौधों की आपूर्ति करेगी। समूह को इससे लाभ होगा और समूह को किसी तरह का ऋण भी नहीं लेना पड़ा।
श्रमिकों को अब मजदूरी ही नहीं व्यवसाय भी दे रही मनरेगा - अमर उजाला
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