जामताड़ा : ठीक एक साल पहले देश-दुनिया की जिदगी सामान्य तरीके से चल रही थी लेकिन कोरोना कहर के बाद ऐसा बदलाव आया कि कई लोगों ने आपदा को अवसर में बदल दिया। किसी ने अपना उद्यम शुरू किया तो कई दूसरे राज्यों से घर लौटकर निजी काम-धाम घर-गांव में ही शुरू कर दिया।
जामताड़ा जिले में कई कामगार व बाहर व्यवसाय कर रहे लोगों ने अपना व्यवसाय ही बदल लिया। कोरोना काल में इससे उन्हें नुकसान नहीं पहुंचा बल्कि अपने पैतृक क्षेत्र में नया कारोबार शुरू कर दूसरों के लिए प्रेरक भी बने। कहते हैं कि बाहर काम करने से अच्छा अपने घर में ही कारोबार व अन्य काम ठीक है। यहां ज्यादा शांति से अपनों के बीच रहकर बेहतर कमाई हो रही है। घर-बार बेहतर ढंग से चल रहा है। आपदा को इन्होंने कुछ इस तरह से अवसर में बदला कि लॉकडाउन की मार से उनका नया व्यवसायिक जीवन गुलजार हो गया।
केस स्टडी 01 :
करमाटांड़ के मटटांड़ में रहते हैं विनोद मंडल। मुंबई में ऑटो चलाते थे। लॉकडाउन हुआ तो गाड़ी भी बंद हो गई। कमाई मारी गई तो दो महीने किसी तरह गुजारे। फिर यहां अपना गांव चले आए। मुंबई में रहकर वे अपने घर बमुश्किल दस हजार रुपये महीना में भेज पाते थे। यहां आने के बाद दो माह घर में बैठे रहे। फिर कुछ करने का मन बनाया। अगरबत्ती बनाने का कारोबार घर में ही शुरू किया। इसमें घर सदस्यों का भी उन्हें सहयोग मिला। अब वे अगरबत्ती बनाते हैं और थोक विक्रेताओं को आपूर्ति करते हैं। विनोद कहते हैं कि आज महीना में इस कारोबार से पंद्रह हजार रुपये आराम से बचत कर लेते हैं।
केस स्टडी 02 :
करमाटांड़ के मटटांड़ के ही रहने वाले हैं निवासी दिलीप मंडल। गिरिडीह जिले में गिफ्ट की दुकान चलाते थे। लॉकडाउन में स्थिति खराब हुई कि वहां सबकुछ बंद कर वापस घर लौटना पड़ा। जून में वे गिरिडीह से लौटे थे। यहां भी काम-धाम नहीं मिल रहा था। ऐसे में उनकी परेशानी बढ़ रही थी। पर वे हिम्मत नहीं हारे। कुछ पूंजी जुगाड़ कर घर में ही पत्तल व दोना बनाने का कारोबार शुरू कर दिया। आज इनका कारोबार पत्तल-दोना से बढ़कर खाना परोसने से जुड़ी हर सामग्री तक पहुंच गई है। बीस हजार रुपये यहां घर-परिवार के साथ रहकर कमाई हो रही है।
केस स्टडी 03 :
करमाटांड़ के पिपरासोल निवासी दिलीप पंडित हैं। वे दस वर्षो से बेंगलुरु में काम करते थे। लॉकडाउन में वहां उन्हें काम मिलना बंद हो गया। बड़ी मुश्किल से जुलाई में यहां गांव आ सके। घर में भी परिस्थिति बिगड़ रही थी। काम मिल नहीं रहा था। ऐसे में उन्होंने अपनी दुकान चलाने की बात सोची और पूंजी जुगाड़ कर हार्डवेयर की दुकान खोल ली। करीब बीस हजार की कमाई हो जाती है।
केस स्टडी 04 :
नारायणपुर के रहने वाले हैं मंगल मंडल। वे भी खुद का व्यवसाय कर दूसरों के लिए नजीर बने हुए हैं। पटना में वे काम कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। लॉकडाउन के बाद घर लौटे। उन्होंने स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाया। होटल खेल लिए। वे कहते हैं कि नारायणपुर के बावनबीघा में एक छोटा सा होटल उनका चलाने लगा है। कमाई से बाहर से अच्छी हो रही है। पटना में पांच से छह हजार पगार में काम करते थे। आगे व्यवसाय और बढ़ेगा।
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लॉकडाउन की मार के बाद अपना व्यवसाय हुआ गुलजार - दैनिक जागरण
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