कैथल [सोनू थुआ]। शहद उत्पादन और मधुमक्खी पालन के लिए कैथल का गांव मछरेहड़ी किसी परिचय का मोहताज नहीं है। इस गांव के बाशिंदों ने खेती के साथ- साथ मधुमक्खी का पालन कर न केवल अपनी जीविका को सुधारा, बल्कि अच्छा पैसा कमा रहे हैं। गांव में 40 घर रहते हैं, जिसमें से हर घर में शहद का काम किया जा रहा है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की ओर से इस गांव को मधुग्राम का दर्जा दिया जा चुका है। हर परिवार से एक सदस्य जरूर इस व्यवसाय से जुड़कर लाखों रुपये की आमदनी कर रहा है। मधुमक्खी पालक रिंकू, सतपाल, सलिंद्र, नरेश रामकुमार ने बताया कि गांव के लोगों ने मधुमक्खी पालन को 25 साल से अपना व्यवसाय के रूप में अपनाया है। धान के साथ- साथ खेत के एक कोने में मधुमक्खी पालन के लिए डिब्बे रखे हुए हैं, जहां पर मधुमक्खी का पालन किया जा रहा है। वहीं गांव के पास में जंगल है, जहां फूलों के पौधे लगे हुए हैं। मक्खियां उन फूलों के रस को चूस कर डिब्बों में शहद को परिवर्तित करती है।
यहां पर जाता है गांव का शहद
गांव के किसान संदीप बताते हैं कि दिल्ली, यूपी, चरखी दादरी, हिसार, बरवाला, अबोहर हिमाचल प्रदेश आदि जगह पर शहद की सप्लाई होती है। वहां से लोग पहले ही शहद का ऑर्डर भेज देते हैं। वहीं शुद्ध शहद तैयार किया जाता है। गांव के युवाओं ने कई बार शहद उत्पादन में पुरस्कार भी जीते हैं। एपिस इंडिका, एपिस मेलिफेरा, डोरसेटा, एपिस सेराना और स्टिगलेस नामक मधुमक्खी का पालन किया जा रहा है। गांव में एपिस मेलिफेरा मधुमक्खी को सबसे ज्यादा लोग पालते है। अन्य मक्खियों से बड़ी होती है। इससे शहद भी अधिक मिलता है। 100 रुपये किलो तक शहद बिक जाता है।
जमीन कम होने पर अपनाया धंधा
ग्रामीण बारू राम ने बताया कि वर्तमान समय में जमीन कम होती जा रही थी, परिवार का पालन पोषण करना मुश्किल भरा हो रहा है। इसलिए परंपरागत खेती के साथ शहद का काम शुरू किया हुआ है। खेती के साथ सहायक धंधे अपना कर युवा अपने रोजगार को बढ़ा सकते हैं। मधुमक्खी पालन व्यवसाय आमदन का अच्छा जरिया है।
100 रुपये किलो बिकता है शहद
ग्रामीण रणधीर बताते हैं कि शहद 80 रुपये किलो बिक रहा हैं। वहीं जब फूलों का मौसम नहीं होता है तो मधुमक्खियों चीनी की खुराक देनी होती है। शहद सरसों, सफेदा, अलीची, सेब, गुलाब, नीम, आदि के फूलों से अच्छा शहद तैयार होता है। शहद तैयार होने पर पतंजलि, डाबर जैसी कंपनियां शहद खरीद कर ले जाती हैं। वहीं इससे पहले सीवन ब्लॉक का गोहरा गांव भी मधुग्राम के नाम से जाना जाता है। वहां के लोग भी शहद को अपना व्यवसाय अपना रहे हैं।
सरकार देती है सब्सिडी
कृषि विज्ञान केंद्र के मुख्य विज्ञानी रमेश चंद्र का कहना है कि समय समय पर कृषि से संबंधी कार्यों के प्रशिक्षण दिलाता रहता है। युवा मधुमक्खी पालन व्यवसाय का प्रशिक्षण लेकर कार्य को आरंभ कर सकते हैं। जिसमें सरकार अनुसूचित जाति को 50 प्रतिशत, पिछड़ी जाति को 33 प्रतिशत व सामान्य जाति को 25 प्रतिशत तक सब्सिडी प्रदान करती है। इस गांव को रेवाड़ जागीर की पंचायत के साथ जोड़ा गया है।
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कैथल का ऐसा गांव, जहां हर गांव में पाली जाती है मधुमक्खी, मधुग्राम का मिला है दर्जा - दैनिक जागरण
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