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मनोज सिंह, करौं (देवघर): करौं प्रखंड के केंदवरिया गांव के युवा गौतम कुमार सिंह डेढ़ वर्ष पहले एक प्राइवेट संस्थान की नौकरी छोड़ गांव में पोल्ट्री फार्म का व्यवसाय शुरू किया। अपने गांव से तीन किमी दूर प्रखंड के बुढ़वाटांड़ में काम शुरू किया एवं आज प्रतिमाह 60 हजार से अधिक कमा रहे हैं। कहा कि गांव में स्वरोजगार के बेहतर संसाधन हैं, लेकिन यहां रह कर कोई काम करना नहीं चाहता। मेहनत से संसाधनों का उपयोग करें तो स्वयं के साथ ही अन्य लोगों को रोजगार दे सकते हैं। गौतम 2007 में स्नातक करने के बाद नई दिल्ली व पूर्णिया में कार कंपनी फोर्ड इंडिया में सर्विस मैनेजर थे। मैनेजमेंट का प्रशिक्षण लेने के दौरान खुद का व्यवसाय करने का मन बनाया। वह
नवंबर 2019 में दस वर्षों तक नौकरी करने के बाद गांव आ गए। कड़ी मेहनत के बल पर वह आज सर्विस मैनेजर की नौकरी के दौरान मिलने वाले वेतन के डेढ़ से दोगुना प्रतिमाह कमा रहे हैं। अभी पोल्ट्री फार्म में दस हजार मुर्गियां है। घर वालों का मिला पूरा सहयोग गौतम बताते हैं कि फोर्ड इंडिया में 40 हजार रुपये वेतन मिल रहा था। लेकिन, उनके पोल्ट्री फार्म खोलने के निर्णय पर परिवार वालों ने पूरा सहयोग किया। व्यवसाय शुरू के लिए लगभग 20 से 25 लाख रूपए की जरूरत थी। स्थानीय एसबीआई के शाखा प्रबंधक ने पाल्ट्री फार्म के लिए ऋण देने से इंकार कर दिया। तब खुद की जमा पूंजी से काम शुरू किया। उनके पिता आशुतोष सिंह कृषक जबकि मां गृहणी है। वहीं छोटा भाई राजू सिंह दिल्ली में फोर्ड इंडिया कंपनी में ही कार्यरत है। युवाओं की करेंगे मदद गौतम चाहते हैं कि गांव का युवा घर में ही स्वरोजगार करे। बताते हैं कि गांव में सब्जी, फल उत्पादन के साथ ही डेयरी, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन जैसे स्वरोजगार के कई साधन हैं। लेकिन, युवा इन्हें अपनाने के बजाय छोटी-मोटी नौकरी के लिए शहरों की ओर भागते हैं। करौं को डेयरी हब बनाने का सपना गौतम ने कहा कि इस करौं क्षेत्र को डेयरी हब बनाने का सपना है। ताकि आसपास के लोग दूध का व्यवसाय करें एवं बेचने के लिए कहीं बाहर जाना नहीं पड़े। इससे यहां दूध उत्पादकों को व्यवसाय करने में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होगी। .................
मुर्गीपालन में आने वाली समस्याओं के समाधान के लिए जरूरी सलाह दी जाती है। इसके अलावे सरकार द्वारा दी जाने वाली योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है। डॉ विनय कुमार, प्रखंड पशुपालन पदाधिकारी, करौं।
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नौकरी छोड़कर लौटे गांव, मुर्गीपालन को बनाया व्यवसाय - दैनिक जागरण
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