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Tuesday, July 13, 2021

जापान तक पुश्तैनी व्यवसाय की पहुंच - दैनिक जागरण

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शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी

एक दौर में भेड़ की ऊन के व्यवसाय में उत्तराखंड की खास पहचान रही है। आज भी कई परिवार इस पारंपरिक व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। भले ही स्थानीय स्तर पर भेड़ की ऊन के हैंडलूम वस्त्रों की कद्र न हो, लेकिन विदेश में इन वस्त्रों की अच्छी-खास मांग है। यही वजह है कि वीरपुर (डुंडा) गांव में किन्नौरी समुदाय के दो भाई हर महीने एक हजार रुपये प्रति मीटर के हिसाब से सौ मीटर से अधिक भेड़ की ऊन का हैंडलूम थान जापान भेज रहे हैं। इन युवाओं के प्रयास से भेड़ के ऊन के पारंपरिक व्यवसाय को संजीवनी मिल रही है।

जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 15 किमी दूर ऋषिकेश की ओर वीरपुर (डुंडा) गांव पड़ता है। इस गांव के अधिकांश लोग जाड़-भोटिया और हिमाचल के किन्नौरी समुदाय से हैं। इनका पुश्तैनी व्यवसाय भेड़ पालन और भेड़ की ऊन का हैंडलूम उद्योग है। यहां छोटी-छोटी हथकरघा मशीन हर घर में हैं। इसी गांव में किन्नौरी समुदाय के दो भाई मनोज नेगी व विनोद नेगी भी अपने पुश्तैनी व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। 38-वर्षीय मनोज बताते हैं कि उन्होंने आइटी में डिप्लोमा कोर्स किया है। आठ वर्ष तक देहरादून की एक कंपनी में ग्राफिक डिजाइनर का काम किया। इसी दौरान वे अपने गांव में तैयार भेड़ की ऊन के कपड़े को बेचने के लिए आनलाइन वेबसाइट को देखते रहते थे।

बताया कि वर्ष 2015 से लेकर 2019 तक उन्होंने यूके की एक कंपनी को ग्रामीणों के तैयार किए कपड़े के थान बेचे। इसी दौरान वेबसाइट के जरिये उनका संपर्क जापान की एक कंपनी से हुआ। इसके बाद वे नौकरी छोड़कर गांव लौटे और घर में ही हैंडलूम मशीन लगाकर जुट गए कपड़ा तैयार करने में। इस काम उन्होंने छोटे भाई विनोद को साथ ले लिया। ऊन और कच्चा धागा वे गांव की महिलाओं से ही खरीदने हैं। इससे गांव में 20 से अधिक महिलाओं को रोजगार मिल रहा है।

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दो साल में दस लाख का कपड़ा जापान भेजा

मनोज ने बताया कि उनके पिता मंगलचंद नेगी देहरादून स्थित एक जापानी कंपनी में हैंडलूम का काम करते हैं। जबकि, मां भागीरथी देवी वीरपुर में भेड़ की ऊन के पुश्तैनी व्यवसाय में हाथ बंटाती है। बताया कि भेड़ की ऊन का कपड़ा तैयार करने के साथ वे अब कंडाली (बिच्छू घास) और लिनेन का कपड़ा भी हैंडलूम के जरिये तैयार कर रहे हैं। लिनेन के लिए कच्चा धागा वे बंगाल से मंगाते हैं। मनोज के अनुसार जुलाई 2019 से अब तक वे करीब दस लाख रुपये का भेड़ की ऊन का कपड़ा जापान भेज चुके हैं

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हर वर्ष 95 टन ऊन का उत्पादन

उत्तरकाशी जिले में गंगा से लेकर यमुना घाटी तक के काश्तकारों का कृषि-बागवानी के साथ भेड़ पालन भी मुख्य व्यवसाय है। जिले में वीरपुर, डुंडा, बगोरी, नाकुरी, जखोल, हर्षिल, ओसला, गंगाड़, लिवाड़ी, फिताड़ी सहित 15 से अधिक गांवों के लोग भेड़ पालन व्यवसाय से जुड़े हैं। उत्तराखंड भेड़ एवं ऊन विकास बोर्ड का सर्वे बताता है कि वर्तमान में उत्तरकाशी जिले में 85 हजार से अधिक भेड़ हैं। इनसे प्रतिवर्ष करीब 95 टन ऊन निकलती है।

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