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Monday, July 19, 2021

आनलाइन व्यवसाय करने वाली कंपनियों को भाया जशपुरिहा चाय - Nai Dunia

Publish Date: | Mon, 19 Jul 2021 06:41 PM (IST)

जशपुरनगर नईदुनिया प्रतिनिधि। जशपुरिहा चाय का बाजार देश में लगातार बढ़ता जा रहा है। वनविभाग के मार्ट और आउटलेट दुकान के माध्यम से देश के कोने कोने तक पहुंच रही इस चाय की खुश्बू अब देश की जानी मानी आनलाइन व्यवसाय करने वाली कंपनियों को भी भाने लगा है। इन कंपनियों से विभाग को ग्रीन टी और ब्लैक टी के आर्डर लगातार मिल रहें हैं। बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए वनविभाग जिले में बागान के विस्तार का कार्य तेजी से कर रही है। सरकारी बगान के साथ नीजि भूमि पर बगान विकसीत करने के लिए भी विभिन्ना सरकारी योजना के माध्यम से किसानों को सहायता दी जा रही है। डीएफओ एसके जाधव ने बताया कि जिले में फिलहाल चाय के चार बगान मौजूद हैं। इनमें तीन सरकारी और एक नीजि क्षेत्र का बगान है। इन बगानों का रकबा तकरीबन 80 एकड़ है। इन बगानों से चाय की पत्तियों की तुड़ाई कर इन्हें जशपुर के बालाछापर और मनोरा तहसील के सोगड़ा में स्थापित टी प्रोसेसिंग यूनिट में तैयार कर पैकेजिंग की जाती है। उन्होनें बताया कि जशपुर जिले में उत्पादित चाय की विशेषता इसकी शतप्रतिशत जैविक खाद पर आधारित होना है। इसकी वजह से चाय की खुश्बू और इसका स्वाद तो बेहतर होता ही है,साथ ही स्वास्थ्य के लिए भी यह अधिक असरकारक होता है। इन्ही विशेषताओं की वजह से बाजार में जशपुर की चाय की मांग तेजी से बढ़ती जा रही है। चाय के पैंकेट को फिलहाल वनविभाग अपने आउटलेट और मार्ट के साथ खुले बाजार में भी उतार चुकी है। डीएफओ ने बताया कि अब विभाग को आनलाइन कंपनी की ओर से भी चाय पत्ती आपूर्ति के लिए आर्डर मिलने लगी है। विभाग प्रोसेसिंग और पैकेजिंग के बाद तैयार चाय को 24 सौ से 7 सौ रूपए प्रति किलो की दर से बेचा जा रहा है। उन्होनें बताया कि हैंड मेड चाय 24 सौ रूपए प्रति किलो और प्रोसेस किया हुआ चाय 7 सौ रूपए प्रति किलो दर निर्धारित किया गया है। जानकारी के लिए बता दें कि जिले में चाय बगान की शुरूआत वर्ष 2007 में शहर के नजदीक स्थित धार्मिक स्थल सोगड़ा में अवधूत भगवान राम के मार्गदर्शन में किया गया था। उन्होनें असम से चाय के पौधें मंगा कर,प्रसिद्व चाय विशेषज्ञ आईडी सिंह के मार्गदर्शन में आश्रम परिसर में इसे रोपा था। चाय विशेषज्ञों द्वारा किए गए अध्ययन में यहां की जलवायु,मिट्टी और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुकुल पाएं जाने पर 11 एकड़ में इसका विस्तार किया गया था। सोगड़ा में चाय बगान को मिली सफलता के बाद वर्ष 2011 में जिला प्रशासन ने शहर के नजदीक ग्राम पंचायत सारूडीह के ढरूआकोना गांव में 11 किसानों की जमीन को किराए पर लेकर वनविभाग के माध्यम से जिले में पहले सरकारी चाय बगान की शुरूआत की थी। शुरूआत में लड़खड़ाने के बाद यह सरकारी बगान अब लहलहाने लगा है। सारूडीह के साथ इस वक्त मनोरा,बालाछापर में भी चाय बगान तैयार हो चुकी है। बालाछापर में चाय के पौधें तैयार करने के लिए एक नर्सरी भी वन विभाग स्थापित कर चुका है। जशपुर की जलवायु में तैयार चाय के पौधे,दूसरे राज्यों से लाए गए पौधों के मुकाबले बेहतर परिणाम दे रहें है। सरकारी चाय बगान को मिली आशातीत सफलता से अब किसान अपनी नीजि भूमि पर बगान लगाने के लिए आगे आने लगे हैं।

बाक्स :

पर्यावरण के साथ आर्थिक मददगार है चाय की खेती-

चाय बगान,किसानों के लिए आर्थिक रूप से तो फायदेमंद है ही,साथ ही पर्यावरण के लिहाज से भी यह बेहद मददगार होता है। डीएफओ एसके जाधव ने बताया कि चाय बगान में साल भर में कम से कम तीन बार पत्तियों की तुड़ाई की जाती है। नगद फसल होने के कारण,किसानों को पत्ती की कीमत तत्काल मिल जाती है। साथ ही चाय बगान में चाय के पौधों को छाया देने के लिए छायादार पेड़ों की वृहद पैमाने पर लगाया जाता है,इससे वन परिक्षेत्र में वृद्वि होती है और चाय बगान से उत्सर्जित होने वाले आक्सीजन,वायुमंडल को शुद्व करते हैं।

वर्जन

आनलाइन कंपनियों से चाय आपूर्ति का आर्डर मिल रहा है। इसकी पूर्ति के लिए आवश्यक व्यवस्था की जा रही है। बगान के विस्तार का लगातार प्रयास किया जा रहा है।

एसके जाधव,डीएफओ,जशपुर।

Posted By: Nai Dunia News Network

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