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Wednesday, August 4, 2021

जमा पूंजी : वसूली की चिंता छोड़ व्यवसाय पर दें ध्यान - Patrika News

Financial management : रीकोर्स व नॉन-रीकोर्स फैक्टरिंग non-banking financial companies के विकल्पों से व्यापारियों को मिल सकती है राहत

असीम त्रिवेदी

(लेखक सीए, ऑडिटिंग एंड अकाउंटिंग स्टैंडर्ड और कंपनी मामलों के जानकार हैं)

Financial management : पिछले हफ्ते ऑफिस में खंडेलवाल जी, जो एक लघु उद्योग चलाते हैं, का आना हुआ। कोरोनाकाल के बाद सामान्य वित्तीय प्रबंधन की समस्याओं से जूझ रहे थे। उनका कहना था कोरोना की पहली लहर के बाद माल जम कर बिका, पर सारा उधारी पर और उधारी आने का समय आया तो दूसरी लहर आ गई, सारी कार्यशील पूंजी ग्राहकों के पास फंसी है, बैंक ने पहले से ही यथासंभव सुविधाएं दे दी हैं लेकिन अब भी कार्यशील पूंजी की तंगी है। ग्राहक पैसे देंगे जरूर लेकिन रुला- रुला कर देंगे। मालूम नहीं भविष्य में व्यवसाय कैसे करेंगे?

मैंने कहा - निराश न हों, सरकार ने हाल ही फैक्टरिंग बिल factoring bill में संशोधन कर लोकसभा से पास करवा लिया है। लागू होते ही करीब साढ़े नौ हजार नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों non-banking financial companies को लघु और मध्यम व्यापारिक संस्थानों को फैक्टरिंग सेवाएं देने की अनुमति होगी। इसमें व्यवसायी के पास विकल्प होगा कि वह अपने विक्रय के बिल लेकर एनबीएफसी के पास जाएगा और एनबीएफसी से बिल का 80 प्रतिशत तक प्राप्त कर सकेगा। एनबीएफसी ही ग्राहकों से व्यवसायी की राशि संग्रहित करेगी और सारा भुगतान प्राप्त होने पर शेष 20 प्रतिशत भी व्यवसायी को दे देंगी।

खंडेलवाल जी की आंखों में चमक आ गई। उन्होंने अगला प्रश्न दागा - यदि मेरे ग्राहक ने फैक्टरिंग एनबीएफसी को पैसे नहीं दिए तो? मेरा जवाब था - एनबीएफसी को कानूनी कार्यवाही का हक होगा, ऊपर से ग्राहक की क्रेडिट रेटिंग अलग खराब होगी। खंडेलवाल जी बोले - तब हम तो तनाव मुक्त ही हो जाएंगे। मैंने कहा - बिल्कुल सही, आपका ग्राहक भावनात्मक रूप से आपको टाल सकता है, लेकिन फैक्टरिंग सर्विस देने वाली कंपनियों के सामने उसकी एक न चलेगी। खंडेलवाल जी ने जिज्ञासापूर्वक पूछा - ये फैक्टरिंग सर्विस वाले लोग तो मनमाना ब्याज लेंगे? मैंने कहा - ये कंपनियां आरबीआइ के नियमों से बंधी हैं, वही शुल्क लेंगी जो आरबीआइ कहेगी। हालांकि जोखिम ज्यादा है तो ब्याज दर भी ज्यादा होना स्वाभाविक है। एक बात और, फैक्टरिंग दो तरह से हो सकती है - रीकोर्स फैक्टरिंग, यानी ग्राहक ने पैसे नहीं दिए तो आप देंगे; और नॉन-रीकोर्स फैक्टरिंग, यानी पैसा डूबा तो एनबीएफसी जाने। अब आप अपने ग्राहक की तासीर देख कर विकल्प चुनिए और डूबत खातों से मुक्ति पाइए।

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