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पीलीभीत। कल्पना सूरी को कोरोना निगल गया। उसके पति जसपाल सिंह सूरी की सड़क हादसे में मौत हो गई। तब हालात कुछ ऐसे बने कि उनकी बेटी रिया सूची को ट्रांसपोर्ट कंपनी संभालने पड़ी। अपने हौसले की बदौलत 27 वर्षीय रिया सूरी जनपद की पहली महिला ट्रांसपोर्टर बनीं।
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ट्रांसपोर्ट के व्यवसाय में पुरुषों का वर्चस्व है। महिलाएं केवल अपवाद हैं। क्योंकि वाहन चालकों-परिचालकों से संवाद रखना हर किसी के बूते की बात नहीं होती। रिया सूरी ने पिता के 40 वर्ष पुराने ट्रांसपोर्ट व्यवसाय को न केवल संभाला, बल्कि उसे आगे भी बढ़ाया। उनका कहना है कि ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय बुरा नहीं है। जो लोग यह सोचते हैं कि महिलाएं या लड़कियां ट्रांसपोर्ट नहीं चला सकतीं, उन्हें यह जान लेना चाहिए कि अगर हिम्मत है तो कोई भी सफल ट्रांसपोर्टर बन सकता है। रिया ने दिल्ली से बीकाम आनर्स और बरेली कॉलेज से एमकॉम किया। वह सीएस की तैयारी कर रहीं थीं, लेकिन उसी बीच चार सितंबर 2018 को उनके पिता की मृत्यु हो गई।
हमारा 40 वर्ष पुराना काम है। अगर पिता का काम छोड़ देती तो उनका नाम खत्म हो जाता। बेटी होने की वजह से सबने मुझे मना किया था, पर मैं नहीं मानी। हिम्मत और हौसले की बदौलत में आज मैं सफल ट्रांसपोर्टर हूं। - रिया सूरी, ट्रांसपोर्टर
फैशन डिजाइनिंग में झंडा गाड़ रहीं बेटियां
पीलीभीत। अब बेटियां आर्थिक तौर पर आत्म निर्भर बनना चाहती हैं। इसलिए जब कभी भी उन्हें अवसर मिलता है वे आगे बढ़ जाती हैं। महिला सशक्ति वेलफेयर सोसाइटी की ओर से संचालित इजा फैशन में काम कर रहीं बेटियों से जब बातचीत हुई तो इसकी झलक साफ दिखी। बेटियां फैशन के क्षेत्र में नए प्रयोग कर रही हैं। जरदोजी और हैंडवर्क के जरिए सलवार शूट को नया लुक देने में वे आगे हैं। इन बेटियों के बनाए सलवार शूट एक्सपोर्ट कान्क्लेव में पसंद किए गए हैं। सोसाइटी की संचालक अर्शी जहां का कहना है कि बेटियों का हुनर एक न एक दिन सबको कामयाबी दिलाएगा। अभी से इस छोटे से शहर से बड़े फैशन वर्ल्ड में सिर्फ दस्तक दी गई। संवाद
अपने हाथ से मैं ऐसा कुर्ता डिजाइन करती हूं कि हाथों हाथ पसंद आए। हाथ की कढ़ाई और जरी के काम से फैशन वर्ल्ड में दस्तक दे रहे हैं।
- फरहा
फैशन वर्ल्ड में गुंजाइश काफी है। अगर हमें प्रोत्साहन मिले तो हमारे बनाए विभिन्न डिजाइन देश विदेश में पसंद किए जाएंगे। - रीना
दौड़ ने दिया जज्बा तो शारीरिक शिक्षक बन गईं सोनी मोर्या
पीलीभीत। शहर के मोहल्ला थान सिंह की रहने वाले सोनी मौर्या ने कठिन परिश्रम करने के बाद बदायूं जिले के गिंदो देवी कॉलेज में प्रवक्ता (शारीरिक शिक्षक) की नौकरी हासिल कर ली। सोनी ने बताया कि बचपन में उनके पिता कल्लूराम का देहांत हो गया था। इसके बाद चार बहनों और दो भाइयों के पालन पोषण की जिम्मेदारी मां आरती देवी पर आ गई। इस बीच आरती देवी को उपाधि महाविद्यालय में नौकरी तो मिल गई, लेकिन वहां से मिलने वाले वेतन से परिवार का खर्च चलना मुश्किल था। सोनी ने 2008 इंटरमीडिएट करने के बाद पीलीभीत से ही स्नातक की पढ़ाई की। सोनी ने बताया कि वह कक्षा छह में पढ़ती थीं तब स्कूल स्तर दौड़ हुई थी। इसमें वह खूब तेज दौड़ीं और प्रथम स्थान हासिल किया। इसके बाद उन्होंने बनारस से 2012 में बीपीएड और 2014 एमपीएड किया। इसी दौरान राष्ट्रीय स्तर की दौड़ प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल हासिल कर लिया। 2018 में पीएचडी की। इस दौरान उनकी मां आरती देवी की मौत हो गई। कठिन परिश्रम से नेट पास करने के बाद जून 2020 में बदायूं के गिंदो देवी कॉलेज में शारीरिक शिक्षा में प्रवक्ता के पद पर उनका चयन हो गया।
बेटा-बेटी में कोई अंतर नहीं, साबित कर रही संजना
पीलीभीत। संजना की मां नौ वर्ष पहले गुजर गईं। उनसे एक साल पहले संजना के पिता का देहांत हो गया। दादा भूपराम 83 वर्ष के हो चुके हैं। छोटा भाई अक्षय गंगवार बीएससी कर रहा है। छोटी बहन अति गंगवार बीकॉम कर रही है। दादा की देखरेख और भाई-बहन को पढ़ाने और आगे बढ़ाने के लिए 19 वर्षीय संजना गंगवार मोबाइल शॉप पर नौकरी कर रहीं हैं। अपनी जॉब से यह साबित कर रही हैं कि बेटे और बेटी में अंतर नहीं होता। इस तरह से बेटा परिवार को संभाल सकता है। उसी तरह से बेटी भी परिवार को आगे बढ़ा सकती है। संवाद
ट्रांसपोर्ट के व्यवसाय में पुरुषों का वर्चस्व है। महिलाएं केवल अपवाद हैं। क्योंकि वाहन चालकों-परिचालकों से संवाद रखना हर किसी के बूते की बात नहीं होती। रिया सूरी ने पिता के 40 वर्ष पुराने ट्रांसपोर्ट व्यवसाय को न केवल संभाला, बल्कि उसे आगे भी बढ़ाया। उनका कहना है कि ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय बुरा नहीं है। जो लोग यह सोचते हैं कि महिलाएं या लड़कियां ट्रांसपोर्ट नहीं चला सकतीं, उन्हें यह जान लेना चाहिए कि अगर हिम्मत है तो कोई भी सफल ट्रांसपोर्टर बन सकता है। रिया ने दिल्ली से बीकाम आनर्स और बरेली कॉलेज से एमकॉम किया। वह सीएस की तैयारी कर रहीं थीं, लेकिन उसी बीच चार सितंबर 2018 को उनके पिता की मृत्यु हो गई।
हमारा 40 वर्ष पुराना काम है। अगर पिता का काम छोड़ देती तो उनका नाम खत्म हो जाता। बेटी होने की वजह से सबने मुझे मना किया था, पर मैं नहीं मानी। हिम्मत और हौसले की बदौलत में आज मैं सफल ट्रांसपोर्टर हूं। - रिया सूरी, ट्रांसपोर्टर
फैशन डिजाइनिंग में झंडा गाड़ रहीं बेटियां
पीलीभीत। अब बेटियां आर्थिक तौर पर आत्म निर्भर बनना चाहती हैं। इसलिए जब कभी भी उन्हें अवसर मिलता है वे आगे बढ़ जाती हैं। महिला सशक्ति वेलफेयर सोसाइटी की ओर से संचालित इजा फैशन में काम कर रहीं बेटियों से जब बातचीत हुई तो इसकी झलक साफ दिखी। बेटियां फैशन के क्षेत्र में नए प्रयोग कर रही हैं। जरदोजी और हैंडवर्क के जरिए सलवार शूट को नया लुक देने में वे आगे हैं। इन बेटियों के बनाए सलवार शूट एक्सपोर्ट कान्क्लेव में पसंद किए गए हैं। सोसाइटी की संचालक अर्शी जहां का कहना है कि बेटियों का हुनर एक न एक दिन सबको कामयाबी दिलाएगा। अभी से इस छोटे से शहर से बड़े फैशन वर्ल्ड में सिर्फ दस्तक दी गई। संवाद
अपने हाथ से मैं ऐसा कुर्ता डिजाइन करती हूं कि हाथों हाथ पसंद आए। हाथ की कढ़ाई और जरी के काम से फैशन वर्ल्ड में दस्तक दे रहे हैं।
- फरहा
फैशन वर्ल्ड में गुंजाइश काफी है। अगर हमें प्रोत्साहन मिले तो हमारे बनाए विभिन्न डिजाइन देश विदेश में पसंद किए जाएंगे। - रीना
दौड़ ने दिया जज्बा तो शारीरिक शिक्षक बन गईं सोनी मोर्या
पीलीभीत। शहर के मोहल्ला थान सिंह की रहने वाले सोनी मौर्या ने कठिन परिश्रम करने के बाद बदायूं जिले के गिंदो देवी कॉलेज में प्रवक्ता (शारीरिक शिक्षक) की नौकरी हासिल कर ली। सोनी ने बताया कि बचपन में उनके पिता कल्लूराम का देहांत हो गया था। इसके बाद चार बहनों और दो भाइयों के पालन पोषण की जिम्मेदारी मां आरती देवी पर आ गई। इस बीच आरती देवी को उपाधि महाविद्यालय में नौकरी तो मिल गई, लेकिन वहां से मिलने वाले वेतन से परिवार का खर्च चलना मुश्किल था। सोनी ने 2008 इंटरमीडिएट करने के बाद पीलीभीत से ही स्नातक की पढ़ाई की। सोनी ने बताया कि वह कक्षा छह में पढ़ती थीं तब स्कूल स्तर दौड़ हुई थी। इसमें वह खूब तेज दौड़ीं और प्रथम स्थान हासिल किया। इसके बाद उन्होंने बनारस से 2012 में बीपीएड और 2014 एमपीएड किया। इसी दौरान राष्ट्रीय स्तर की दौड़ प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल हासिल कर लिया। 2018 में पीएचडी की। इस दौरान उनकी मां आरती देवी की मौत हो गई। कठिन परिश्रम से नेट पास करने के बाद जून 2020 में बदायूं के गिंदो देवी कॉलेज में शारीरिक शिक्षा में प्रवक्ता के पद पर उनका चयन हो गया।
बेटा-बेटी में कोई अंतर नहीं, साबित कर रही संजना
पीलीभीत। संजना की मां नौ वर्ष पहले गुजर गईं। उनसे एक साल पहले संजना के पिता का देहांत हो गया। दादा भूपराम 83 वर्ष के हो चुके हैं। छोटा भाई अक्षय गंगवार बीएससी कर रहा है। छोटी बहन अति गंगवार बीकॉम कर रही है। दादा की देखरेख और भाई-बहन को पढ़ाने और आगे बढ़ाने के लिए 19 वर्षीय संजना गंगवार मोबाइल शॉप पर नौकरी कर रहीं हैं। अपनी जॉब से यह साबित कर रही हैं कि बेटे और बेटी में अंतर नहीं होता। इस तरह से बेटा परिवार को संभाल सकता है। उसी तरह से बेटी भी परिवार को आगे बढ़ा सकती है। संवाद
ट्रांसपोर्ट व्यवसाय में रिया सूरी ने किया धमाल - अमर उजाला
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