मोतिहारी | मोतिहारी संवाददाता
नगर के बाजारों में एक से बढ़कर एक आर्टिफिशियल लाइट के आ जाने से मिट्टी के दीयों के व्यवसाय पर सीधा असर पड़ रहा है। जिसके कारण कुम्हार दीयों के व्यवसाय से मुंह मोड़ने के मूड में आ गये हैं। दीये हों या मिट्टी के अन्य कोई बर्तन,उन्हेंतैयार करने और पकाने में कुम्हारों को अधिक लागत लगाना पड़ता है,पर जब बर्तन नहीं बिकते हैं तो कुम्हार परिवार में काफी निराशा होती है। इन परिवारों की दीपावली-छठ इन्हीं मिट्टी के दीयों और बर्तनों की बिक्री पर निर्भर रहता है।
बंजरिया प्रखंड के चैलाहां चौक निवासी पंैसठ वर्षीय कुम्हार बजरंगी पड़ित ने बताया कि अब दीयों और मिट्टी के बर्तन बनाने का व्यवसाय लाभ का काम नहीं रह गया है। इसका कारण यह है कि बाजार में किस्म-किस्म के बिजली लाइट आ गये हैं। जिसके कारण कोई मिट्टी का दीया नहीं खरीदना चाहता है। दीये बनाने के लिए चार हजार रुपये प्रति ट्रेलर मिट्टी लखौरा से खरीदकर मंगाया जाता है। तब दीये और मिट्टी के अन्य बर्तन तैयार किये जाते हैं। खर्च अधिक और बिक्री नाम मात्र का।
उन्होंने कहा कि पहले दशहरा से लेकर छठ तक दीये खूब बिकते थे। लोग रंग-बिरंगे बिजली की लाईटों की ओर अधिक आकर्षित हो रहे हैं। दीवाली के दिन भी लोग केवल दो-तीन मोमबत्तियों से काम चला लेते हैं। राजकिशोर पड़ित बताते हैं कि दीपावली -छठ को लेकर हमलोग मिट्टी के दीये और बर्तन बनाते तो हैं पर उनको शायद ही कोई खरीदने आता है। इस काम में खर्च बहुत अधिक और लाभ कुछ भी नहीं होता है। बिक्री नहीं होने से हम कुम्हारों की परेशानी बहुत बढ़ जाती है। मेरे परिवार में दीपावली और छठ का त्योहार इन्हीं दीयों की बिक्री पर निर्भर रहता है।
दीयों के व्यवसाय पर पड़ रहा असर - Hindustan हिंदी
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