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Monday, September 26, 2022

NAVRATRI : कोरोना के दो साल बाद फिर 'गरबा' व्यवसाय ने पकड़ा जोर - Patrika News

- मिट्टी के गरबा का महत्त्व :
गरबा का संस्कृत नाम गर्भ-द्वीप है। देवी की आर्धना आरंभ करने से पहले उनके निकट छिद्र वाले कच्चे घड़े को फूलों से सजा कर उसमें दीपक रखा जाता है। इसे दीपगर्भ या गर्भदीप कहते हैं। इसके नाम में कई बदलाव हुए और अंत में यह ‘गरबा’ कहलाया जाने लगा। नवरात्रि NAVRATRI की पहली रात गरबा की स्थापना कर उसमें ज्योति प्रज्वलित की जाती है। महिलाएं इसके चारों ओर आराधना करते हुए फेरे लगाती हैं। देवी को प्रसन्न करने के लिए किए जाने वाले इस नृत्य का नाम भी गरबा जाना जाने लगा। इसलिए गरबा खेलने से पहले मिट्टी के गरबे की स्थापना जरूरी है।
- 100 से 500 रूपए का बिकता है गरबा :
होलसेल मार्केट में एक गरबे की कीमत 100 रुपए है। इसके बाद इसे सजाने के लिए इसमें छिद्र किए जाते हैं। फिर इसे तरह तरह के रंगों से रंगा जाता है। रंग लग जाने के बाद इसे फूलों और अन्य चीजों से सजाकर आकर्षक बनाया जाता है। इस पर व्यापारी अतिरिक्त खर्च करते है। इसलिए बाजार में आते आते इसकी कीमत 200 से 500 रुपए तक हो जाती है।
- मिट्टी, रंग और सजावट के समान वालों को भी लाभ :
गरबा बनाने के लिए आवश्यक है मिट्टी। इसलिए मिट्टी बेचने वालों को सबसे पहले ऑर्डर मिला। गरबे को सजाने के लिए बड़े पैमाने पर रंगों और अन्य सामान वालो को भी ऑर्डर दिया गया। जिससे इनके व्यापार को गति मिली।
- ऑर्डर पूरा करने के लिए दिन-रात किया काम :
पिछले दो साल सारे व्यापारी आर्थिक समस्या से जूझ रहे थे। इस साल सभी के पास अच्छे ऑर्डर हैं। ऑर्डर पूरा करने के लिए कई छोटे व्यापारियों को भी काम सौंपा गया। सभी परिवार ऑर्डर पूरा करने में जुट गए। पिछले 4 माह से दिन रात काम किया है।
- मुनाफ माटलावाला, गरबा विक्रेता

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