![कार्यशाला को संबोधित करते कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज कार्यशाला को संबोधित करते कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज](https://www.hindusthansamachar.in/Encyc/2023/10/16/16-hsr7_577_H@@IGHT_901_W@@IDTH_600.jpg)
तीन दिवसीय 41वीं अखिल भारतीय समन्वित आलू अनुसंधान परियोजना की वार्षिक कार्यशाला शुरू
हिसार, 16 अक्टूबर (हि.स.)। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज ने कहा है कि भारत की कृषि-खाद्य नीति, कम लागत से खाद्य उत्पादन को बढ़ाना और कृषि को युवा पीढ़ी के लिए एक आकर्षक व्यवसाय बनाना चुनौतियों पर केंद्रित है। इसके बावजूद उत्पादकता में धीमी वृद्धि, चरम जलवायु घटनाएं, उत्पादन की बढ़ती लागत और कृषि जोत का निरंतर विखंडन किसानों के लिए कृषि-आधारित आजीविका को अस्थिर बना रहा है। वे सोमवार को एचएयू के कृषि महाविद्यालय में 41वीं अखिल भारतीय समन्वित आलू अनुसंधान परियोजना की तीन दिवसीय वार्षिक कार्यशाला के शुभारंभ अवसर पर अपना संबोधन दे रहे थे।
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सब्जी विज्ञान विभाग और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्- केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित की गई इस कार्यशाला में देश के विभिन्न राज्यों के 25 भारतीय कृषि परिषद परियोजना केंद्रों से आए वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं। प्रो. कम्बोज ने प्रतिभागी वैज्ञानिकों से आह्वान किया कि वे इस बैठक के दौरान भारत में आलू की वर्तमान और भविष्य की संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा करें। साथ ही राष्ट्रीय खाद्य व पोषण सुरक्षा की रक्षा के लिए रणनीति तैयार करें।
कुलपति ने आलू के संदर्भ में बोलते हुए कहा कि 376 मिलियन टन के रिकॉर्ड वैश्विक उत्पादन के साथ चावल और गेहूं के बाद आलू दुनिया की तीसरी सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसल है। चीन (94 मिलियन टन) के बाद भारत आलू का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक (54.2 मिलियन टन) है। विश्व स्तर पर भारत का आलू उत्पादन लगभग 14.3 प्रतिशत है। भारत में उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा उत्पादक (16.16 मिलियन मीट्रिक टन) है और हरियाणा 0.78 मिलियन मीट्रिक टन आलू का उत्पादन करता है। आलू की उच्च उत्पादकता और पोषक मूल्य के कारण एफएओ ने इसे भविष्य के लिए भोजन के रूप में नामित किया है।भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहायक महानिदेशक (फूल-सब्जी-मसाले और औषधीय पौधे) डॉ. सुधाकर पांडे ने आलू में जलवायु परिवर्तन आधारित शोध करने पर जोर दिया। साथ ही आलू में पोषण आधारित अनुसंधान के महत्व पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आलू की कम अवधि की विविधता वाली, गर्मी सहने वाली किस्मों पर शोध को प्राथमिकता देना समय की मांग है।
हिन्दुस्थान समाचार/राजेश्वर/संजीव
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