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खगरिया:जिला मुख्यालय से सटा एक बस्ती (अब नगर परिषद में शामिल) है आवास बोर्ड। 2005 तक यह एक गुमनाम गांव था। 2006 में यहां के सामाजिक कार्यकर्ता इंजीनियर धर्मेंद्र ने स्थानीय लोगों को पेड़ा व्यवसाय से जोड़ा। शुरुआत में खगड़िया बस स्टैंड पर पान दुकान करने वाले पान दुकानदार अशोक यादव और नितिन कुमार उर्फ पप्पू यादव इससे जुड़े। दोनों ने अपने-अपने घरों पर पेड़ा बनाने के लिए भट्टी जलाई। क्वालिटी के कारण पेड़ा व्यवसाय चल निकला। नाम ही पर गया आवास बोर्ड का पेड़ा। इसके बाद देखते ही देखते यहां 50 भट्ठी जलने लगी। आज पेड़ा बनाने, पेड़ा बाहर ले जाकर बेचने के कारोबार से सीधे तौर पर चार सौ लोग जुड़े हुए हैं। पेड़ा बनाने में दूध, चीनी और भट्ठी जलाने में जलावन की जरूरत पड़ती है। इसको लेकर भी छह सौ लोग सीधे जुड़े हुए हैं। कहने का मतलब एक हजार परिवार की आजीविका इससे चल रही है। यहां 160 से 250 रुपये किलो तक पेड़ा मिलता है। जरा, इनकी सुनिए.. अशोक यादव कहते हैं- मैंने पेड़ा बेचकर अपने बेटा को डाक्टर बनाया। वे कहते हैं- यहां से पेड़ा सूबे के कोने-कोने तक जाता है। इसके अलावा पूर्वी यूपी, झारखंड के सभी बड़े शहरों समेत सिलीगुड़ी और सिक्किम तक पेड़ा भेजे जाते हैं। पेड़ा व्यवसाय से जुड़े विपिन यादव ने कहा कि पहले बेरोजगारी में दिन कटते थे। इंजीनियर धर्मेंद्र की प्रेरणा से पेड़ा बनाना शुरू किया। अब प्रतिदिन सौ किलो पेड़ा की खपत होती है और आराम से आठ सदस्यों के परिवार की गाड़ी चल रही है। राधे साह के पेड़ा का बड़ा कारोबार है। यहां 15 मजदूर काम करते हैं। कोट यहां प्रतिमाह 10 लाख के आसपास पेड़ा का कारोबार होता है। इस व्यवसाय ने आवास बोर्ड की तस्वीर ही बदल डाली है। अब पेड़ा व्यवसायियों के सहकारी समिति बनाने का प्रयास हो रहा है। ताकि इसे और मजबूती प्रदान की जा सके।
व्यवसाय ने आवास बोर्ड की तस्वीर ही बदल डाली है। – Tarun Mitra - Tarun Mitra
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